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Sunday, May 3, 2020

शब्द और अर्थ

मैंने शब्दों को संभाला
उन्हें अपने हृदय की जेब में 
चुप-चाप रखते हुए 
प्रसन्न हुआ,

फिर कई रात एकांत में कोई 
स्वप्न सी छाया लिए
आता रहा मेरे सिरहाने,

मैंने एक रात घबरा कर 
उससे पूछ ही लिया 
कौन हो तुम ?
उसने कहा अर्थ !

मैंने उसे पुनः सुनने की कोशिश की
ऐसा लगा जैसे
वह अपनी ध्वनि में एक समय
कई अर्थों में बज रहा हो
और फिर मैं बेहोश हो गया,

सुबह होती रही शाम बीतती रही 
और रात इसी तरह 
घबराहट में पूरी तरह 
मेरे हृदय में धड़कती रही,

मैंने घबराते चीखते हुए कल रात
फेंक दिए वह शब्द जिसे 
चुप-चाप मैं उठा लाया था,

अगली सुबह जब नींद खुली तो
सूर्य मेरे दरवाजे पर 
रौशनी की गर्माहट को रोके 
खड़ा हुए था और अर्थ 
चुपचाप मुझे गोदी में संभाले
थपकियाँ दे रहा था।
(अप्रमेय)

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