व्याकरण के लोग
शब्दों की थरथराती टांगों को
छड़ी की तरह पकड़े
हमेशा से देखते रहे आकाश
सदियों तक बच्चों की कई किस्तें
उनके आकाश में निहारने के अर्थ को
समझने में खप गईं
जिन्होंने नकल की ताबीज पहनी
वे ही समझदार कहलाए
वे भी बड़े हुए आकाश को निहारते
और उन्होंने चली आ रही भाषा में कही
कुछ पुरानी हो गई भाषा की प्रतिध्वनि,
एक सयाने बच्चे ने उनमें से उन्हीं से
पूछ ली तारों की कहानी
और कहानी खत्म होने के बाद
अपने आप से किया एक प्रश्न
कि क्या पुरानी भाषा के समय
आकाश कुछ दूसरे रंग का होता था ?
तारे क्या और ज्यादा चमकते थे ?
भूख और प्यास क्या उन्हें
हमसे अधिक सताती थी !
(अप्रमेय)
No comments:
Post a Comment