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Saturday, May 9, 2020

व्याकरण

व्याकरण के लोग 
शब्दों की थरथराती टांगों को
छड़ी की तरह पकड़े
हमेशा से देखते रहे आकाश
सदियों तक बच्चों की कई किस्तें 
उनके आकाश में निहारने के अर्थ को 
समझने में खप गईं

जिन्होंने नकल की ताबीज पहनी 
वे ही समझदार कहलाए
वे भी बड़े हुए आकाश को निहारते
और उन्होंने चली आ रही भाषा में कही
कुछ पुरानी हो गई भाषा की प्रतिध्वनि,

एक सयाने बच्चे ने उनमें से उन्हीं से 
पूछ ली तारों की कहानी 
और कहानी खत्म होने के बाद
अपने आप से किया एक प्रश्न
कि क्या पुरानी भाषा के समय
आकाश कुछ दूसरे रंग का होता था ?
तारे क्या और ज्यादा चमकते थे ?
भूख और प्यास क्या उन्हें 
हमसे अधिक सताती थी !
(अप्रमेय)

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