उन्होंने कहा ईश्वर वे चुप रहा
उन्होंने रचे पाठ वो सुनता रहा
गढ़ी मूर्तियां पहनाए वस्त्र
वह देखता रहा
सुबह-शाम गांव-गांव
अब उन्हें छोड़
उन्हें सजाने वालों की
चर्चा चलने लगी
यह सब सुनते, देखते
मंदिर में खड़े देवता के प्रेम में
किसी ने रच डाला एक गीत
दूसरे ने उसमें भरे कुछ स्वर
फिर धीरे-धीरे लोगों ने इस
गूंज को बनाया मन्त्र और
स्थापित हुआ एक प्राणवान विग्रह
लोगों ने अपने अपने हृदय में
किए देवता के दर्शन
पहनाया एक दूसरे को माला
और अपने अपने कामों में लग गए
तब जब उन्होंने सजाया था ईश्वर
कोई आकशवाणी नहीं हुई थी
और अब भी वे चुप ही हैं
पर अब शायद लोगों ने यह जान लिया है
कि गांव-गांव छप्पर-छप्पर
हर घर मे वे जन्म ले रहे हैं
सोहर सुनने के लिए
लोरियों को लय देने के लिए
शायद कभी वे मंदिर में रहते हों
पर नए सदी के भगवान को
एकांत पसंद नहीं
वे अब घरों में रहना चाहते हैं
अपनी मां की डांट सुनना चाहते हैं।
(अप्रमेय)
No comments:
Post a Comment