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Saturday, April 4, 2020

शरीर के बाहर आदमी

शरीर के बाहर आदमी
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शरीर के बाहर मनुष्य
और शरीर के अंदर मन
दोनों ही पूछते रहे सवाल 
मैं खुद भूल गया 
मुझे जाना किधर था 
या कहूँ भटकता रहा
दर-बदर,

नींद और बेहोशी दोनों ही 
ठीक समय पर मिलती रही 
दवाई की तरह,

आंखें भरती रहीं पर 
व्यर्थ हुआ उनका टपकना
कहीं भी नहीं मिली जमीं
न ही जन्म पा सका कोई
रुद्राक्ष,

सफर में आज की सुबह हुई
और दिख पड़ा आम का पेड़
राहगीरों ने कहा टिकोरा 
पर मुझे एक एक पत्ता अर्घा
और सभी टिकोरे दिख पड़ा
शिवलिंग।
(अप्रमेय)

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