बूढ़ा बाप अपने हिस्से की
बची खुशी को स्थगित कर देता है
अपने पियक्कड़ बेटे की खातिर,
बूढ़े बाप ने बचपन में
एक कहावत सुनी थी
बाढ़े पूत पिता के कर्मे सो
अपने बुजुर्गियत के सारे बचे काम को
अपनी बूढ़ी पत्नी के हवाले कर
कुछ अपनी दवाइयों को न खरीद कर
चोरी से मंदिर में कुछ पैसे चढ़ा आया,
बूढ़ा बाप हर समय बैंक नहीं जा सकता
सो कुछ पैसे अपनी गांधी बनियान में
घर के लोगों से छुपाए हुए है
मैं जानता हूँ अपने अनुभव से यह बात
कि वह इस पैसे को किसको देगा,
कल रात उसका बेटा दारू के नशे में
नाली से निकाला गया था
आज सुबह उसने अपने गेट के सामने
जाम नाली को पानी की तेज धार से साफ किया,
बूढा होना और वह भी
पियक्कड़ बेटे का बूढ़ा बाप होने में फर्क है
यह परकथा नहीं है
एक अनुभव है जिसकी कहानी
मेरे कविता के मंदिर में सुबह-शाम
उनसे मिलने के बाद
घंटे की तरह बज रही है।
(अप्रमेय)
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