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Tuesday, April 7, 2020

काल की किसानी

जो जो खड़े हैं
अपनी गंध के साथ
वे यह जानते हैं नहीं तो 
देर-सबेर समझ ही जाएंगे कि
पृथ्वी उनकी माँ है और जल पिता,

ऐसा भी होता रहा है कि 
अपने बीच के किसी क्यारी से 
कोई फूल मुरझा गया
उसके मुरझाने का दुख तो है ही पर 
एक बात जो समझ लेने जैसी है
वह यह कि कुछ भी यहां
वैसा नहीं होता जैसा
हमको समझाया जाता रहा है,

इसलिए हमनें एक मात्र
अग्नि को साक्षी मान कर  
सम्बोधित किया उन्हें गुरु,
यह वही है जिसने
शब्द को हमारी जिह्वा पर 
स्पर्श से हमारी व्याकुलता पर
और रूप से हमारे ध्यान को 
निर्देशित किया,

वह जानता है वायु के पास 
पंख नहीं हैं, न ही कोई चोंच है
वह बस हाहाकार करते आकाश से
निकल पड़ी है जिसे 
अभी पुनः रोपा जाना बाकी है
काल की किसानी की कहानी
हमेशा से अलग-थलग पड़ी रही
जिसे कभी भी किसी भी
इतिहास के पन्ने में 
दर्ज नहीं किया जा सका है।
(अप्रमेय)

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