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Sunday, September 13, 2020

ढल जाएगी शाम

शाम ढल गई
एक दिन मेरी भी 
ढल जाएगी जिंदगी
सुबह होगी कारवाँ होगा
और धूल की तरह
बवंडरों के माफिक जाने कहाँ
बिसर जाएंगी सबके बीच से 
मेरी यादें,
मैं सोचता हूँ सबके बीच से जाना
और खुद अपने-आपको
खोते हुए देखना 
कितनी सुंदर घटना है
जहां हर तस्वीर हर चेहरा मुझे
पकड़ता है भाव-विभोर होते हुए
मेरे अस्तित्व के एक-एक कतरे का
सूखा रंग उनके पास है
जब-जब आंख भरेगी
तब-तब सागर में लहरे उठेंगी
तुम जिसे भाषा में
कविता समझते हो
दरअसल वे जीवन की छुपी हुई औषधि हैं
जिसके सूत्र कविताओं के चित्र में
प्राचीनतम भाव-लिपि से अंकित हैं।
(अप्रमेय)

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