सुनो उनसे कह देना
अब पत्तों के झरने की आवाज
नहीं सुनाई पड़ती
टूटते तारे अब
मनौती पूरी नहीं कर पाते
फूल अब जड़ों की कहानी
भौरों को बिना बताए
रस भर पिला देते हैं
एक शहर से निकलते
दूसरे शहर तक जाते रास्ते
अब बिना चाय पिये
हांफ रहे हैं
चिड़िया चुप है
नदियों से उसने पानी पीना छोड़ दिया है
गिलहरी ने कुँए के अंदर
बनाया है अपना घर
कल रात एक बुजुर्ग को
मैंने सुनाई अपनी बात
उसने कहा कवि हो ?
मैंने कहा नहीं
पहले था कभी
अभी फिलहाल
पागल हूँ।
(अप्रमेय)
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