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Sunday, September 13, 2020

लिख रहा हूँ

इतने दिनों से लिख रहा हूँ
क्योंकि मुझे मालूम है
वे लिखना नहीं जानते
उड़ना जानते हैं 
तैरना जानते हैं
उदासी जानते हैं
पीड़ा जानते हैं
दुख जानते हैं पर
वे बुद्ध को नहीं जानते
गांधी को भी नहीं जानते
पता नहीं पर यकीं के साथ
कह सकता हूँ
मेरे देश के पशु-पक्षी
जीजस को भी नहीं जानते होंगे,
सुनो कोई अनुवादक है क्या
मेरे परिचितों में जो
इनकी स्थिति का 
अनुवाद कर सकें
दुख क्या होता है और 
प्रेम का क्या अर्थ है
इसका सही-सही 
हम सभी को
अंदाज़ा दिला सके।
(अप्रमेय)

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