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Thursday, September 17, 2020

युद्ध

जिंदगी पकड़ती है ऐसे
जैसे किसी अजगर 
ने लपेट रखा हो,
सुबह-शाम एक अजीब सी उदासी से 
आंख चुराते रहने का सिलसिला 
अनवरत जारी है,
हमारे पंजे 
दिमाग के इशारों पर लड़ते हुए
ढीला पड़ जाते हैं
एक चाय की प्याली को भी 
अब थामे रख पाने की इच्छा नहीं करती,
बच्चे आते हैं अपनी पेंसिल को ही 
तलवार बना लेते हैं
मैं देखता हूँ और डरा हुआ उनको कुछ
कहते-कहते रुक जाता हूँ
वे आपस में युद्ध करते हैं
और जोर-जोर से हंसते हैं
मैं चुप रह कर भी
युद्ध के नाम से कांप जाता हूँ।
(अप्रमेय)

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