गुजरना किसी का
याद न रहा कभी
पर किसी का आना
मेरे लिए जरूर ले आता है
अजुरी भर सवाल,
मेट्रो शहर के माफ़िक
आकाश से मग्गे में
पानी सा मिलती है धूप
कतरा-कतरा,
कि अटकी रहती हैं सांस
बारहवीं मंजिल पे
खिड़की से किसी गुमनाम
पेड़ के पत्ते को ताकते ,
हमें पता है
सीढ़ियों से चलने की आती आवाज
नहीं रुकेगी हमारे दरवाजे पे
पर आना किसी का
इस शताब्दी में
गिलास भर पानी की तरह
गले को आँखों सा
नम कर जाता है |
(अप्रमेय)