बारिश में
शहर की गलियों में
उतर आती है नदी,
एक छोटी बच्ची
कागज की नांव बनाए
तैराती है अपने सपनें
पानी धीरे-धीरे बह जाता है
किसी खेत में
नांव की वह चुगदी
सदा के लिए मिट्टी हो कर
पेड़ों या हरी-भरी घासों में
तब्दील हो जाती है,
सपनें बोलते नहीं
आदमी के अंदर एक दृश्य बनाते हैं
कभी-कभी मुझे लगता है
यह सारी वनस्पतियां
किसी के देखे हुए स्वप्न हैं।
(अप्रमेय)