एक तड़प जो उठी थी
उसे गा दिया
जब कभी भी उसे सुना जाएगा
प्रेम पथिकों के बीच
संवाद हो ही जाएगा,
एक रूप बिना स्पर्श के
गढ़ता जा रहा है अंदर
कोई यायावर प्रकट होगा
श्वेत कागज सा
जिसपर आँखों की तुलिका
अपने भावों से
भर देगी उसमें आत्मा का रंग,
देर-सबेर
कोई न कोई सांचा
मिल ही जाएगा
जिसमें रूप का अरूप से
मिलन हो ही जाएगा
(अप्रमेय)